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    "अब नेतृत्व हमारा होगा..."

    •⁠  ⁠निशिकांत सिन्हा के नेतृत्व में कुशवाहा समाज की नई जागृति

    •⁠  ⁠जन आशीर्वाद पार्टी से वंचितों की सत्ता में भागीदारी की पुकार

    पटना: ‘‘सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग हमारा है।” यह सिर्फ एक नारा नहीं, जगदेव बाबू के दिल से निकली वो पुकार थी, जो सदियों से दबे-कुचले समाज के दिलों की आवाज बन गई। यह उस अन्याय के खिलाफ बगावत थी, जिसे वंचित समाज ने पीढ़ी दर पीढ़ी सहा। लेकिनशासन में हिस्सेदारी तो दूर, पहचान तक छीन ली गई। बिहार की राजनीति में यह नारा आज भी गूंजता है, लेकिन विडंबना यह है कि जिन नब्बे लोगों की बात की गई, वे आज भी सत्ता के गलियारों से बाहर खड़े हैं। उन्हें केवल वोट बैंक समझा गया, लेकिन नेतृत्व की कुर्सी देने की बात आई तो हर बार दरकिनार कर दिया गया। लेकिन अब वह समय बदल रहा है। अब कुशवाहा समाज सहित तमाम वंचित और उपेक्षित तबके जाग चुके हैं’’। यह कहना है इस जागृति की मशाल थामे हुए निशिकांत सिन्हा का। यह एक ऐसा नाम हैं, जो अब केवल आवाज उठाने तक खुद को सीमित नहीं कर बल्कि इसे एक जानंदोलन में तब्दील करने को आतुर हैं। उन्होंने ‘जन आशीर्वाद पार्टी’ की स्थापना कर यह स्पष्ट संदेश दिया है कि अब केवल समर्थन देने का नहीं, नेतृत्व करने का वक्त आ गया है। अब वंचितों को अपनी तकदीर खुद लिखनी है, और राजनीति की दिशा तय करनी है।

    टूटती विरासत, उठती चेतना: 

    निशिकांत सिन्हा कहते हैं कि बिहार का इतिहास गौरवशाली रहा है। यह धरती सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य, और चाणक्य की रही है। मौर्य वंश, जिसकी जड़ें सामाजिक न्याय, प्रशासनिक दक्षता और सार्वभौमिक कल्याण में थीं। आज उसी परंपरा से जुड़ा कुशवाहा समाज, राजनीतिक और सामाजिक नेतृत्व से लगातार वंचित होता रहा है। कभी बिहार की राजनीतिक धारा को दिशा देने वाला यह समाज, आज गुमनाम बनकर केवल वोट देने वाले समाज में गिना जा रहा है। नेतृत्व के नाम पर इनकी उपेक्षा इस कदर हुई कि पीढ़ियों ने स्वयं को केवल ‘संख्या’ समझ लिया, ‘नेता’ बनने की कल्पना करना छोड़ दिया। लेकिन अब यह सब बदल रहा है। अब कुशवाहा समाज अपनी विरासत को फिर से पहचान रहा है, और नेतृत्व की दावेदारी कर रहा है।

    निशिकांत सिन्हा: संघर्ष से संकल्प तक की यात्रा: 

    निशिकांत जी किसी बड़े राजनीतिक घराने से नहीं आए हैं। वह उस जमीन से आए हैं जहां लोगों के पास बोलने की ताकत नहीं थी, केवल सहने की आदत थी। उन्होंने गांव की गलियों में गरीबी, भेदभाव और हाशिए का जीवन देखा, समझा और जीया। उन्होंने वही रास्ता चुना जिससे लाखों लोग रोज़ गुजरते हैं और यह रास्ता कठिनाइयों, अनदेखी और संघर्ष से भरा रास्ता है।

    निशिकांत सिन्हा कहते हैं कि सत्ता बदलने से समाज नहीं बदलता, समाज को बदलने के लिए नेतृत्व खुद खड़ा करना पड़ता है। मेरा संघर्ष सिर्फ मेरे लिए नहीं है। बल्कि  यह उस पीढ़ी के लिए है जहाँ आज युवाएं आज भी नौकरी के लिए शहरों की खाक छानते हैं। यह प्रयास  उन किसानों के लिए हैं, जिनके खेत हैं पर उनको अधिकार नहीं है। यह जनांदोलन उन महिलाओं के लिए हैं जो हर चुनाव में वादा सुनती हैं लेकिन बदलाव कभी महसूस नहीं करतीं।

    यह पार्टी नहीं, आत्मसम्मान की आवाज है: 

    निशिकांत सिन्हा बताते हैं कि जन आशीर्वाद पार्टी का जन्म केवल राजनीतिक विकल्प के तौर पर नहीं हुआ, यह एक संकल्प था वंचितों को नेतृत्व में लाने का। यह पार्टी उन समाजों की आवाज है जो अब तक सिर्फ गिनती में शामिल थे लेकिन निर्णयों से बाहर थे। समाज जिन्हें जातीय आंकड़ों में तो सबसे ऊपर बताया जाता है लेकिन जिन्हें कभी मुख्यमंत्री या मंत्री पद का स्थायी नेतृत्व नहीं मिला। अब ये समाज चुप नहीं हैं। वे जान गए हैं कि अगर सत्ता में भागीदारी चाहिए, तो नेतृत्व भी खुद को ही बनाना होगा।

    निशिकांत पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं कि जब समाज मजबूत होता है, तो कोई उसे अनदेखा नहीं कर सकता। हम अब सिर्फ भीड़ नहीं रहेंगे, नीति भी तय करेंगे और नेतृत्व भी खुद गढ़ेंगे।

    तीन संकल्प: शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान: 

    निशिकांत कहते हैं कि उनका सोच राजनीति नारों की नहीं, ज़मीन की राजनीति का है, जो दिल से निकलती है और दिलों को जोड़ती है। हमने अपनी आंखों से देखा है कि जब तक समाज शिक्षित नहीं होगा, तब तक नेतृत्व का सपना अधूरा रहेगा। जब तक महिलाएं स्वस्थ नहीं होंगी, तब तक परिवार और पीढ़ियां कमजोर रहेंगी। और जब तक युवा आत्मनिर्भर नहीं होगा, तब तक उसकी जिंदगी संघर्ष और पलायन में ही बीतेगी। यही कारण है कि उन्होंने अपनी राजनीति को तीन मजबूत स्तंभों पर खड़ा किया—शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मानजनक स्वरोजगार। प्रत्येक साल छात्र-छात्राओं को बेहतर शिक्षा प्रदान कराने के उद्देश्य से उन्हें गोद लेना एवं छात्रवासों के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान करना उन्हें एक राजनेता की भीड़ से अलग कर भविष्य निर्माता की श्रेणी में खड़ा करता है। उन्होंने स्थानीय संसाधनों पर आधारित रोज़गार से युवाओं को आत्मनिर्भर बनने का रास्ता दिखाया है। यह राजनीति नहीं, वंचितों के जीवन में उम्मीद और बदलाव की शुरुआत है।

    राजनीति से आगे, समाज का पुनर्जागरण: 

    निशिकांत जी मानते हैं कि अगर समाज को बदलना है, तो उसे खुद अपनी लड़ाई लड़नी होगी। वह कहते हैं कि नेतृत्व कोई हमें सौंपेगा नहीं, हमें खुद आगे आना होगा। उनकी यह सोच समाज में जागरूकता की लहर पैदा कर रही है। गांवों में महिलाएं खुलकर कह रही हैं कि अब वे सिर्फ वोट देने वाली नहीं रहेंगी, वे निर्णय में भी भाग लेंगी। युवा अब नौकरी के लिए भीख नहीं, सम्मानजनक मंच मांग रहा है। यह केवल सत्ता का बदलाव नहीं, यह सामाजिक चेतना का पुनर्जागरण है जहां लोग खुद को समाज का निर्माता मानने लगे हैं, न कि केवल उपेक्षित प्रजा।

    अब निर्णय की घड़ी है: 

    बिहार आज इतिहास के एक मोड़ पर खड़ा है। एक ओर हैं वे पारंपरिक ताकतें जो केवल वादे करती हैं और सत्ता में आकर भूल जाती हैं। दूसरी ओर हैं निशिकांत सिन्हा जैसे नेता, जो समाज के बीच से निकलकर आए हैं और उसे साथ लेकर चल रहे हैं। निशिकांत सिन्हा बताते हैं कि जन आशीर्वाद पार्टी अब केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि बिहार के वंचित समाज के लिए विश्वास का प्रतीक बन चुकी है। अब वक्त है सोच बदलने का। अब वक्त है नेतृत्व में हिस्सेदारी लेने का। अब वक्त है यह कहने का कि हमारा भी समय आया है, और अब हम सिर्फ भाग नहीं मांगेंगे, नेतृत्व तय करेंगे।

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