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    मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य का रक्षक: गाँव तक पहुंची सुरक्षित संस्थागत प्रसव की सुविधा

    पटना: ‘‘पहले डिलीवरी के नाम से डर लगता था, अब विश्वास है कि गांव में ही सब संभव है।" ये शब्द हैं वैशाली जिले की सोनी देवी के, जिन्होंने गोरौल प्रखंड के सोंधो एपीएचसी के एल-1 केंद्र में सुरक्षित प्रसव कराया। वह बताती हैं कि उन्हें पूरी सुविधा मिली, नर्सें भी पूरी तरह प्रशिक्षित थीं और बच्चे को भी समय पर देखभाल मिल गई। यह कहानी बिहार के उस परिवर्तन की झलक है, जिसमें अब सुरक्षित संस्थागत प्रसव केवल शहरों तक सीमित नहीं, गांवों तक पहुंच चुका है।

    राज्य सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में सुलभ और सुरक्षित संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए एल-1 प्रसव केंद्रों की स्थापना की है। ये केंद्र सामान्य प्रसव से लेकर उच्च जोखिम वाले मामलों के प्राथमिक प्रबंधन में भी सक्षम हैं। वर्तमान में राज्य के 275 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 154 हेल्थ सब सेंटर पर एल-1 प्रसव केंद्र कार्यरत हैं। वर्ष 2024–25 में इन केंद्रों पर क्रमशः 88,267 और 32,616 संस्थागत प्रसव दर्ज किए गए। यह बदलाव मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है।

    सोंधो का उदाहरण: जब गाँव बना सुरक्षा का गढ़

    वैशाली जिले के गोरौल प्रखंड स्थित सोंधो एपीएचसी पर पिछले दो वर्षों से एल-1 प्रसव केंद्र 24×7 संचालन में है। ब्लॉक हेल्थ मैनेजर रेणु कुमारी बताती हैं कि यहाँ हर माह 40 से 50 प्रसव होते हैं। यह केंद्र न केवल पास-पड़ोस की महिलाओं के लिए एक राहत है, बल्कि उन स्थितियों में भी काम आता है जब महिलाएं किसी कारणवश पीएचसी या अस्पताल नहीं पहुंच पातीं। उन्होंने कहा, “कई बार सामान्य दिखने वाला प्रसव भी जटिल हो सकता है। ऐसे में हम पहले मरीज को स्थिर करते हैं और आवश्यकता होने पर उसे तत्काल पीएचसी रेफर करते हैं।” एल-1 केंद्र पर एक स्थायी एम्बुलेंस की भी व्यवस्था है।

    संक्रमण मुक्त प्रसव और संसाधनों की चुनौती

    एम्स पटना की एडिशनल प्रोफेसर एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ  डॉ. इंदिरा प्रसाद कहती हैं कि एल-1 केंद्रों की सफलता का संक्रमण मुक्त परिसर, प्रशिक्षित मानव संसाधन, और आवश्यक उपकरण की उपलब्धता सबसे अहम पहलू है। वह कहती हैं कि अगर हर एल-1 केंद्र पर आटोक्लेव मशीन, एलडीआर बेड, रेडिएंट वार्मर, प्रशिक्षित बर्थ अटेंडेंट और फोकस लाइट सुनिश्चित किए जाएं, साथ ही रेफरल लिंक मजबूत हो, तो राज्य में पीएचसी स्तर पर प्रसव के दबाव को 50% तक कम किया जा सकता है।

    राज्य की रणनीति और गुणवत्ता पर ध्यान

    राज्य में तीन स्तर के प्रसव केंद्र हैं जिसमें एल-1, एल-2 और एल-3। इसमें एल-1 सबसे प्राथमिक स्तर पर कार्य करता है। वर्तमान में एपीएचसी स्तर पर 112 MBBS, 230 आयुष डॉक्टर, 86 आटोक्लेव मशीन, 71 रेडिएंट वार्मर और 249 स्किल बर्थ अटेंडेंट नर्स कार्यरत हैं। राज्य स्तर पर इन केंद्रों का गैप असेसमेंट किया जा रहा है ताकि जो संसाधन और मानवबल की कमी है, उसे समय रहते दूर किया जा सके। इसके साथ-साथ जच्चा-बच्चा किट का वितरण भी संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करने का एक असरदार जरिया साबित हो रहा है।

    गृह-मुक्त प्रसव की दिशा में ठोस पहल

    राज्य के 23 प्रखंडों के 80 पंचायतों में गृह-मुक्त प्रसव पंचायत अभियान चलाया गया है। एल-1 केंद्र इन पंचायतों में संस्थागत प्रसव को न केवल सुलभ बना रहे हैं, बल्कि मातृ मृत्यु सर्विलांस में सामने आई पाँच प्रमुख कमियों में से एक पीएचसी तक कठिन पहुंच को भी दूर कर रहे हैं। इसके साथ यह केंद्र उच्च जोखिम वाले प्रसवों के प्रबंधन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

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