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    पहली तिमाही में राज्य में एक लाख 87 हजार महिलाओं की हुई एएनसी जांच

    -प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत हुई गर्भवतियों की प्रसव पूर्व जांच

    -प्रत्येक महीने की 9 ,15 और 21 तारीख को होती मनता है अभियान

    पटना। राज्य में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के माध्यम से व्यापक और गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल की जा ही है। इसी कड़ी में राज्य ने वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में एक लाख 87 हजार से ज्यादा प्रसवपूर्व जांच की जा चुकी है। कुछ महीने पहले ही राज्य में इस अभियान को दो दिन से बढ़ाकर  प्रत्येक महीने में तीन दिन किया गया है। इस अभियान के तहत उच्च जोखिम वाली गर्भावस्थाओं का शीघ्र पता लगाकर उनका उचित इलाज किया जाता है, ताकि मातृ एवं नवजात मृत्युदर को कम किया जा सके। राज्य में पहली तिमाही में सबसे ज्यादा एएनसी करने वाले जिलों में बांका, पटना, नवादा और सहरसा शामिल है।

    13 हजार से अधिक उच्च जोखिम वाली गर्भवतियों की हुई पहचान:

    पहली तिमाही में एचएमआईएस के जारी हुए आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में कुल 13 हजार 691 उच्च जोखिम वाली गर्भवतियों की पहचान की गयी है। यह आंकड़ा वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही के आंकड़े से 1.3 प्रतिशत ज्यादा हैं। इन सभी गर्भवतियों को फॉलोअप कर बेहतर उपचार के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं से जोड़ दिया गया है। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष उच्च जोखिम वाली गर्भवतियों की पहचान में भागलपुर, कैमुर, कटिहार, पुर्णिया और जमुई बेहतर पांच जिले हैं।

    पटना की मुन्नी देवी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि मुझे आशा द्वारा प्रसव पूर्व जांच की सुविधा के बारे में पता चला था। मुझे गर्भधारण किए 7 महीने बीत चुके हैं और मैं अभी दो दिन पहले तीसरा प्रसव पूर्व जांच करवाया है. मैं और मेरा गर्भस्थ बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ है और डॉक्टर ने मुझे बताया कि मुझे चौथे जांच के लिए कब आना है।

    प्रसव प्रबंधन में होती है आसानी:

    पीएमएसएमए की शुरुआत 2016 में प्रधानमंत्री के द्वारा किया गया था। इसमें प्रत्येक माह के 9, 15 एवं 21 तारीख को स्वास्थ्य केंद्रों पर विशेषज्ञ चिकित्सकों के द्वारा हीमोग्लोबिन, एचआईवी, शुगर अल्ट्रासाउंड जैसी जांचे की जाती है। जरूरत पड़ने पर गर्भवती महिलाओं को उच्चतर स्वास्थ्य केंद्रों पर भी रेफर किया जाता है। पीएमएसएमए के तहत होने वाली प्रसव पूर्व जांच के बारे में फॉग्सी की पूर्व अध्यक्ष डॉ मीना सावंत कहती हैं गर्भावस्था की पहली तिमाही में प्रसव पूर्व जांच के तहत हीमोग्लोबिन स्तर, मधुमेह, थायरॉइड, ब्लड प्रेशर, एचआईवी और अल्ट्रासाउंड की जांच अनिवार्य होती है, ताकि हाई-रिस्क फैक्टर जैसे प्री-एक्लेम्पसिया, गर्भावस्था का मधुमेह और एनीमिया को प्रारंभिक चरण में ही पहचाना जा सके। विशेषकर किशोरियों और नवविवाहित महिलाओं में फर्स्ट ट्राइमेस्टर रजिस्ट्रेशन और चार अनिवार्य प्रसव पूर्व जांच की पूर्ति मातृ मृत्यु रोकने की कुंजी है। सिस्टम को जरूरत है कि पीएमएसएमए और वीएचएनडी डेटा का समेकित विश्लेषण कर सेवा अंतराल की पहचान करें और जरुरी सेवा प्रदान करना सुनिश्चित करें।

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