बिहार सरकार और यूनिसेफ़ की 'अंकुरण' कार्यक्रम पर कार्यशाला ने बिहार भर में स्वास्थ्यवर्धक स्कूलों के लिए रूपरेखा तय की
पटना। बिहार सरकार और यूनिसेफ़ के सहयोग से पटना में आज ‘अंकुरण’ स्कूल पोषण कार्यक्रम पर राज्य स्तरीय समीक्षा एवं अभिमुखीकरण कार्यशाला आयोजित हुई। कार्यशाला का उद्देश्य बच्चों और किशोरों में कुपोषण और एनीमिया जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा करना और उसे राज्यभर में विस्तार देने की रणनीति तैयार करना था।
कार्यशाला में शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों, ज़िला प्रतिनिधियों और यूनिसेफ़ के विशेषज्ञों ने भाग लिया।
श्री विनायक मिश्र, निदेशक मध्याह्न भोजन, शिक्षा विभाग, बिहार सरकार ने कहा, “विद्यालय बच्चों को स्वास्थ्य और पोषण से जोड़ने का सबसे प्रभावी माध्यम है। बच्चों को प्रोटीन युक्त भोजन देना और पोषण की जानकारी देना जरूरी है, ताकि वे स्वयं और अपने परिवार में भी स्वस्थ आदतें विकसित कर सकें।”
उन्होंने बच्चों में जंक फूड की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताई और इसे मोटापा और प्री-डायबिटीज़ जैसी बीमारी के लिए जिम्मेदार बताया। साथ ही, शहरी क्षेत्रों में विटामिन-डी की कमी की समस्या पर भी उन्होंने ध्यान दिलाया।
श्री मिश्र ने ‘अंकुरण’ कार्यक्रम के सफल संचालन में यूनिसेफ़ की तकनीकी भागीदारी और सहयोग की सराहना करते हुए कहा कि यूनिसेफ़ ने कार्यक्रम की योजना बनाने और तकनीकी मार्गदर्शन में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने सभी ज़िला अधिकारियों से आह्वान किया कि कार्यशाला से मिली सीख को ज़मीनी स्तर पर लागू करें, ताकि अधिक से अधिक बच्चों को लाभ मिल सके।
कार्यशाला के दौरान यह जानकारी दी गई कि वर्तमान में 18,000 विद्यालयों में संचालित ‘अंकुरण’ कार्यक्रम को वर्ष के अंत तक 40,000 स्कूलों तक विस्तारित करने की योजना है।
कॉम्प्रिहेन्सिव नेशनल न्यूट्रिशन सर्वे (CNNS) के अनुसार, बिहार में 28% किशोर एनीमिया से पीड़ित हैं और 23% किशोरों का बॉडी मास इंडेक्स (BMI) सामान्य से कम है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए ‘अंकुरण’ कार्यक्रम स्कूलों में पोषण, स्वास्थ्य जांच, स्वच्छता और सामुदायिक जागरूकता को एक साथ जोड़कर संचालित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम विशेष रूप से कक्षा 1 से 8 तक के 6 से 14 वर्ष के बच्चों को ध्यान में रखकर लागू किया गया है।
कार्यशाला में निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर चर्चा हुई —
•आयरन-फोलिक एसिड अनुपूरण (WIFS): हर सप्ताह शिक्षकों की देखरेख में बच्चों को आयरन की गोली दिया जाना
•राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK): प्रत्येक तिमाही में स्वास्थ्य टीम द्वारा स्वास्थ्य जांच और आवश्यक सलाह।
•स्कूल पोषण वाटिका: विद्यालय परिसर में पोषण वाटिका स्थापित कर बच्चों को पोषण के प्रति जागरूक करना।
•स्वास्थ्य एवं पोषण जागरूकता सत्र: प्रार्थना सभा और कक्षा में स्वच्छता, पोषण और स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी देना।
कार्यशाला में यूनिसेफ़ द्वारा मिड-डे मील गुणवत्ता विश्लेषण और स्कूल पोषण वातावरण मूल्यांकन से जुड़े निष्कर्ष प्रस्तुत किए गए। इसके बाद के सत्र में ज़िला अधिकारियों ने अपने अनुभव साझा किए और ज़मीनी चुनौतियों व समाधान पर चर्चा की।
कार्यशाला में यह संदेश दिया गया कि सरकारी विभाग, विद्यालय, स्वास्थ्यकर्मी और विकास साझेदार मिलकर ही ‘अंकुरण’ कार्यक्रम को सफलता की ओर ले जा सकते हैं।
इस अवसर पर डॉ. विजेता (राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, एएमबी, राज्य स्वास्थ्य समिति), डॉ. राजीव (राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, आरबीएसके, राज्य स्वास्थ्य समिति), डॉ. अंतर्यामी दाश (पोषण विशेषज्ञ, यूनिसेफ़) और डॉ. संदीप घोष (पोषण अधिकारी, यूनिसेफ़) भी मौजूद रहे।
कार्यशाला का समापन श्री आर.के. सिंह, सहायक निदेशक, मध्याह्न भोजन निदेशालय द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने सभी अधिकारियों और भागीदारों से विद्यालयों को स्वास्थ्य और पोषण संवर्धन का केंद्र बनाने के लिए सामूहिक प्रयास का आह्वान किया।
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