शिक्षा विभाग की उदासीनता के कारण लुप्त हो रही शिक्षा की स्थिति चिंताजनक
PRAKASH KUMAR CHAUHAN / AN BIHAR /RAXAUL
द ह्यूमन लिबर्टी नेटवर्क के साथी संस्था आशीष परियोजना डंकन अस्पताल रक्सौल के द्वारा पूर्वी चंपारण जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों में विधालय शिक्षा समिति के साथ मिलकर शिक्षा के उपर एक दिवसीय गोष्ठी कार्यक्रम आधारित किया गया जिसमें ग्रामीण स्तर पर गणमान्य व्यक्ति ,शिक्षक , सामुदायिक नेतृत्त्वकर्ता , विधालय शिक्षा समिति के सदस्य एवं अन्य ग्रामीणों से साक्षात् करने के बाद निम्न आकडे सामने आये इससे हमारे समाज में जो आने वाले भविष्य के लिए या जिनको हम आने वाले में जिनके कंधे पर हमारे देश का भविष्य उनके हाथों में होगा उनके लिए एवं अभिभावकों के लिए ये बहुत ही गंभीर और चिंता का विषय बन गया है :-
विधालय तक नहीं पहुचने के कारण आने वाले समय में बाल श्रम का ख़तरा
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इस कोबिड 19 में जैसा की हम जानते है कि सभी विधालयो में मार्च से अभी तक पठन पाठन का कार्य बंद है इसमें से 20% बच्चे जो ट्यूशन शुल्क देने में सक्षम है वे अपनी शिक्षा ले रहे है जबकि 80% बच्चे का शिक्षा पूर्ण रूप से थप है और आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के कारण वे अपनी शिक्षा पूर्ण नहीं कर पा रहे है इस स्थिति में उनके बीच बाल मजदूरी और बंधुवा मजदूरी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है |
---ग्रामीणों से बातचीत करने पर चौंकाने वाला आकड़ा सामने आया
--- सरकार द्वारा 80% बच्चे के खाते में मध्यान भोजन एवं छात्रवृति की राशि हस्तांतरित कर दी गयी है जबकि 20% बच्चे अभी भी इस योजना से वंचित है
---- गाव से 30% परिवार अपने बच्चों का भविष्य को सजाने सँवारने के लिए दूसरे शहरों के लिए पलायन कर चुके हैं इस उम्मीद में की वह शहर में जाकर अपने शिक्षा को जारी रख सके |
( शिक्षा के बदहाल स्थिति पर चिंतित ग्रामीण)
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* 50% बच्चों का नियमित रूप से विधालय जान पर भी शिक्षक द्वारा उनके शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता है और शिक्षक लोग विधालय से सम्बंधित कार्यों पर ध्यान न देकर अपने व्यक्तिगत कार्यों पर ज्यादा ध्यान रहता है |
* सरकार के द्वारा शिक्षा के अलावा अन्य बिभागियो कार्यों का इतना बोझ रहता है की वे चाहकर पर बच्चों को गुणवता पूर्ण शिक्षा नहीं दे पाते है |
*- शिक्षा विभाग की उदासीनता के कारण जब सरकारी योजना लेने का समय आता है तो विधालय में 100% बच्चों की उपस्थिति दर्ज हो जाती है और अध्यन्न् करने के दिनों में मुश्किल से 50% बच्चे ही शिक्षा ले पाते है जो आने वाले समय में बच्चो को बाल मजदूरी और जबरन पलायन के लिए उत्साहित कर सकती है |
*- 30% ऐसे बच्चे है जो विधालय में नामांकन कराने के बाद भी गुणवता पूर्ण शिक्षा नहीं मिलने के कारण बाल मजदूरी एवं पलायन कर जाते है ताकि मेहनत मजदूरी करके अपनी अच्छी जिंदगी जी सके |
*- शिक्षा विभाग कि उदासीनता के कारण हमारे बिहार में बाल मजदूर का आकड़ा 55 % है जो पूरे राज्य से सर्वाधिक है|
*-- जब भी बाल मजदूर बचाव दूसरे राज्य जैसे केरला, तामिलनाडू , दिल्ली ,और महाराष्ट्र में होता है तो 30%बाल मजदूर बिहार के ही होते है जो हमारे एवं हमारे बिहार के लिए चिंता का विषय है (शिक्षा के अभाव में तालाब में जोखिम लेते बच्चे )
*- 25% विधालय ऐसे है जहां पर बच्चों को विधालय जाते समय कीचड़ से होकर जाना पड़ता है क्योंकि उनके आने जाने का कोई पक्की सड़क नहीं है और इसके उपरा किसी का ध्यान नहीं है | (बारिश के दिनों में बच्चों को इस कीचड़ एवं पानी से भरी सड़क पार कर विधालय जाना पड़ता है)
*-- सरकार के दिशा निर्देश के मुताबिक मई महीने तक बच्चों के लिए पठन पाठन सामग्री की व्यवस्था करनी है जबकि पिछले वर्ष 2019 में नवम्बर महीने में पठन पाठन सामग्री व्यवस्था की गयी औ इस वजह से बहुत दिन तक बच्चे बिना पठन पाठन सामग्री के विधालय जाते रहे और उनका पढाई में अंतर होते गया |
**-- शिक्षा विभाग की दिशा निर्देश के अनुसार विधालय के शिक्षण व्यवस्था एवं विकाश के लिए प्रत्येक विधालय में विधालय शिक्षा समिति का गठन करना है और प्रति महीने 26 तारीख को उनका नियमित बैठक करना है जिससे विधालय का कार्य सुचारु रूप से चल सके |
**-ग्रामीणों से बातचीत के अनुसार विधालय शिक्षा समिति का नियमित संचालन कही भी नहीं है और न ही इसके समिति सदस्यों को कार्य रूप रेखा के बारे में कोई जानकारी है |
**-- विधालय शिक्षा समिति में सभी सदस्यों की उपस्थिति जरूरी नहीं समझी जाती है | खाना पूर्ति के लिए तीन व्यक्ति (अध्यक्ष , सचिव ,प्रधानाध्यापक ) मिलकर आपस में चर्चा कर बैठक कर लेते है |
शिक्षा विभाग से जनता की अपील :-
• बच्चों का पठन पाठन सामग्री समय पर उपलब्ध हो |
• बच्चों और शिक्षक का बायोमेट्रिक हस्ताक्षर |
• नामांकित बच्चों का 100% योजना से जुडाव होना
• बाल संरक्षण समिति और विधालय शिक्षा समिति का सफल क्रियान्वयन जिससे बच्चे बाल श्रम और मानव तस्करी से बच्चे |
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