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    राजनीतिक उपेक्षा की छाया से उजाले की ओर: वजीरगंज के विकास का सपना जनसुराज की सोच के साथ

    राकेश सिंह सीसोदिया, जनसुराज प्रतिनिधि, वजीरगंज विधानसभा, गया

    वजरीगंज/गया:  ऐतिहासिक धरोहरों की भूमि गया सिर्फ एक धार्मिक या सांस्कृतिक केंद्र नहीं, बल्कि संघर्ष और सपनों की जीवंत मिसाल है। इसी गया जिले के वजीरगंज विधानसभा की धरती वर्षों से विकास की बाट जोह रही है। यहां के लोगों ने उम्मीदों की कई सुबहें देखीं, पर हर शाम मायूसी लेकर लौटी। वजीरगंज की आत्मा आज भी ज़िंदा है, लेकिन उस पर वर्षों की राजनीतिक उपेक्षा की धूल जमी है। यहां के लोग मेहनती हैं, युवाओं में हुनर है, महिलाओं में आत्मबल है, लेकिन प्रशासनिक अनदेखी और नेतृत्व की विफलता ने इस ऊर्जा को दिशा नहीं दी। आज जब बिहार बदलाव के एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है, वजीरगंज की आवाज बनकर जनसुराज के प्रतिनिधि राकेश सिंह सीसोदिया सामने आए हैं। एक नई राजनीति, एक दूरदृष्टि और एक मानवकेंद्रित विकास मॉडल के साथ। जनसुराज के वजीरगंज प्रतिनिधि राकेश सिंह सीसोदिया खुद इस पीड़ा को वर्षों से जीते आ रहे हैं। वे कहते हैं, “यहां सपने हर सुबह आंखों में पलते हैं, लेकिन सरकार की आंखों में वजीरगंज का कोई सपना नहीं पलता।”

    एक समृद्ध विरासत, एक संघर्षशील वर्तमान:

    गया की सांस्कृतिक धरोहरों की जब बात होती है तो विष्णुपद मंदिर से लेकर बौद्ध महास्थलों तक, यह भूमि दुनिया भर के श्रद्धालुओं और विचारकों को आकर्षित करती रही है। लेकिन दुर्भाग्यवश, इस ऐतिहासिक भूमि का वर्तमान विकास के पन्नों में गुम है। वजीरगंज जैसे क्षेत्र, जहां लोगों की उम्मीदें जीवित हैं, वहीं सुविधाओं की घोर कमी उन्हें हर दिन तोड़ती है।

    विकास के अधूरे वादे: जब संयंत्र नहीं लगते, सपने चूर होते हैं:

    वजीरगंज के विकास की चर्चा करते हुए राकेश सिंह सीसोदिया भावुक होकर बताते हैं कि रोजगार को लेकर भी वजीरगंज को केवल छलावे ही मिले। यहां बिरला ग्रुप का प्लांट लगना था, जिससे सैकड़ों युवाओं को रोजगार मिल सकता था। आज भी लोग याद करते हैं कि कैसे वह सपना केवल बयानबाजी बनकर रह गया। स्टील प्लांट की घोषणा हुई थी, पर अब तक न धूल उड़ी, न ईंट गिरी। इन अधूरे वादों ने केवल सरकारी योजनाओं पर ही नहीं, लोकतंत्र की आत्मा पर भी सवाल खड़े किए हैं। स्वास्थ्य की बात करें तो आजादी के इतने वर्षों बाद भी वजीरगंज में एक भी ब्लड बैंक नहीं बन पाया है। एक गंभीर रोगी जब खून के लिए इधर-उधर भटकता है, तो परिवार की हालत कैसी होती होगी- इसे कोई राजनेता समझ नहीं पाया। खून की जरूरत पर गया शहर भागना पड़ता है। वजीरगंज जैसे क्षेत्र के लिए यह केवल असुविधा नहीं, जीवन-मृत्यु का प्रश्न है। महिलाओं की प्रसव संबंधी परेशानियों, दुर्घटनाओं और गंभीर बीमारियों में रक्त की अनुपलब्धता जीवन और मृत्यु के बीच एक खाई बन जाती है। 

    राजनीतिक उपेक्षा की शिकार रही है वजीरगंज की आत्मा:

    जनसुराज प्रतिनिधि राकेश सिंह सीसोदिया यह मानते हैं कि वजीरगंज सिर्फ चुनावी गणित का हिस्सा बनकर रह गया है। यहां नेता आते हैं, जनसभाएं करते हैं, भाषण देते हैं, और अगले चुनाव तक के लिए अदृश्य हो जाते हैं। लेकिन वजीरगंज के लोगों का दुख हर दिन सामने होता है। स्कूल में शिक्षक नहीं, अस्पताल में डॉक्टर नहीं, खेत में पानी नहीं, और घर में उम्मीद नहीं। यहां की जमीन उपजाऊ है, लोग मेहनती हैं, लेकिन शासन की अनदेखी ने इस धरती को पीछे छोड़ दिया।

    जनसुराज की सोच: वादे नहीं, व्यवस्था परिवर्तन की दिशा:

    राकेश सिंह कहते हैं कि अभी तक के राजनैतिक विफलताओं के खिलाफ जनसुराज पार्टी खड़ी हुई है- एक सोच के रूप में, एक आंदोलन के रूप में। जनसुराज का उद्देश्य सत्ता पाना नहीं, व्यवस्था को बदलना है। यह पार्टी पलायन को बिहार की नियति नहीं, व्यवस्था की विफलता मानती है। हम चाहते हैं कि वजीरगंज का कोई युवा अब अपने घर को छोड़कर दूसरे शहरों में मजदूरी करने न जाए। वह अपने गांव में ही काम करे, वहीं फैक्ट्री लगे, वहीं स्टार्टअप हो, और वहीं उसके सपने पूरे हों। जनसुराज की सोच केवल रोजगार या सड़क-पुल तक सीमित नहीं है। यह शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने, सरकारी स्कूलों को डिजिटल बनाने, व्यवहारिक शिक्षा को बढ़ावा देने की बात करता है। बच्चों को सिर्फ कक्षा में बैठाना काफी नहीं, उन्हें सपनों के लिए तैयार करना ज़रूरी है।

    भविष्य की ओर: जब बच्चे सपने देखेंगे और यहीं पूरे करेंगे:

    सीसोदिया कहते हैं, "हम चाहते हैं कि अब कोई बच्चा ट्रेन पकड़कर सपने खोजने न जाए, बल्कि वह अपने ही गांव की स्कूल में भविष्य पाए। हम चाहते हैं कि अब कोई बाप अपने बेटे को दूर शहर भेजकर रोए नहीं, बल्कि साथ रहकर उसकी उड़ान देखे।" यह सिर्फ एक राजनीतिक संकल्प नहीं, एक सामाजिक पुकार है। गया के वजीरगंज से उठती हुई एक आवाज, जो कह रही है कि अब राजनीति सिर्फ कुर्सी तक नहीं, ज़मीन तक पहुंचेगी। अब बात सिर्फ घोषणाओं की नहीं, क्रियान्वयन की होगी। और यही है जनसुराज की सोच जो जनता की सरकार है और जनता के लिए एवं जनता के साथ हमेशा खड़ा है। वजीरगंज बदलेगा -जब नेता नहीं, सोच बदलेगी।

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