संघर्षो से लिखी अपनी कहानी, अब टीबी मरीजों को दे रही जिंदगानी
संघर्षो से लिखी अपनी कहानी, अब टीबी मरीजों को दे रही जिंदगानी
- तीन वर्षों में 100 से अधिक मरीजों की सुधा ने की पहचान
- टीबी में जांच को मानती हैं अहम हिस्सा
सीतामढ़ी,28 अक्टूबर ।
अपने बच्चों के लिए मां और पिता, समाज के लिए सिंगल मदर और टीबी विभाग के लिए वह एक जिम्मेवार सहायक यक्ष्मा पर्यवेक्षक हैं। नाम है सुधा सुमन। ऐसे तो सुधा का जीवन संघर्षों भरा है, पर टीबी मरीजों के लिए वह साक्षात ईश्वर का स्वरूप हैं। 2019 में सुधा ने एसटीएस के रूप में टीबी विभाग को ज्वाइन किया, तब इस काम के लिए उन्हें कम चुनौतियां न थी। एक तरफ परिवार और दूसरी तरफ टीबी कार्यक्रम को उत्कर्ष तक ले जाने की चिंता। सुधा यहां भी रुकने वाली नहीं थी। उन्होंने दोनों ही कामों को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया। आज उनके बेहतरीन कार्य का ही नतीजा है कि उन्होंने पिछले तीन सालों में 100 से भी ज्यादा टीबी मरीजों की खोज के साथ उन्हें टीबी से मुक्ति भी दिलायी है। वहीं 21 अक्टूबर से शुरू हुए टीबी रोगी खोज अभियान में 8 रोगियों की खोज कर उन्हें अभयदान भी दिया है।
भौगोलिक परिस्थितियां भी रोक नहीं पायी कदम
सुधा कहती हैं परसौनी और बेलसंड दोनों ही प्रखंड अति बाढ़ प्रभावित क्षेत्र हैं। कुछ दिन पहले ही हमलोग चंदौली चचरी पुल से फील्ड विजिट करने गए थे। दो दिन बाद ही वह पुल नदी में समा गया। इसके बावजूद भी हम कभी नाव से तो कभी दूर के रास्तों से दरियापुर जैसे गांवों में जाकर टीबी रोगियों का हाल और खोज करते थे। कई बार टीबी रोगियों को समझाना बहुत कठिन होता है। कभी -कभी आधा दिन भी उन्हें समझाने में लग जाता है। हाल ही में एक एमडीए रोगी दवा खाने से इंकार कर रहा था। बहुत ज्यादा समझाने और मनाने पर वह दवा खाने के लिए तैयार हुआ। कई बार रास्तों में गाड़ी को ढकेलकर पैदल ही ले जाना पड़ता है, मगर यह टीबी मरीजों के जीवन के आगे कुछ भी नहीं है।
घर से ले जाती है सैंपल
सुधा कहती हैं मैंने अपने फील्ड विजिट के दौरान कई बार ऐसा देखा है जब मरीज जांच करवाने के लिए राजी नहीं होते । ऐसे में लैब टेक्निशियन वरुण और अजीत कुमार को भी साथ लाती हूं ताकि सरकारी तंत्र और टीबी विभाग पर उनका भरोसा टूटे नहीं। मेरे साथ लैब टेक्निशियन भी उन्हें समझाते हैं तब जाकर वे सैंपल देते हैं और उनका इलाज शुरू कर पाती हूं।
घर समाज का मिल रहा साथ
मुझे शुरू से ही घर और परिवार का भरपुर साथ मिला है। लोगों ने मेरे मन को समझा है और सम्मान भी दिया है। प्रतिदिन बच्चों को स्कूल भेजकर फील्ड में 8 घंटे बिताती हूं। हम टीबी मरीजों के इतने पास होते हैं कि 90 प्रतिशत हमें संक्रमण का खतरा है, पर दूसरों की चेहरे की मुस्कान मेरे जीवन के सारे दर्द को हवा कर देती हैं।
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