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    ● बकस्वाहा के जंगल को कटने से बचाने को लेकर बिहार से भी उठी आवाज:- डॉ शंभू सलभ

    ● पर्यावरण एवं मानव जीवन की रक्षा के लिए बकस्वाहा के जंगल को कटने से बचाना जरूरी 

    बकस्वाहा के जंगल को कटने से बचाने को लेकर पर्यावरणविद डॉ. स्वयंभू शलभ ने एक अपील पीएमओ को भेजी है जिसे पीएमओ द्वारा मध्यप्रदेश सरकार के विचारार्थ भेज दिया गया है। उक्त जानकारी सीएमओ (म.प्र.) ने डॉ. शलभ को भेजी है।

    डॉ. शलभ ने प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित बकस्वाहा के जंगल से हीरे की खुदाई के लिए 2.15 लाख पेड़ों को काटे जाने की योजना पर सरकार द्वारा पुनर्विचार किये जाने की मांग की है।
     
    अपनी अपील में डॉ. शलभ ने कहा है कि बकस्वाहा के घने जंगल में असंख्य औषधीय गुणों से युक्त जीवन उपयोगी पेड़ हैं। यह वन्यक्षेत्र बड़ी संख्या में विभिन्न प्रजातियों के पशु पक्षियों का प्राकृतिक आवास है। इस जंगल को काटे जाने से न केवल इन वन्यजीवों का जीवन खतरे में पड़ेगा बल्कि यह समूची वन संपदा तबाह होगी जिसे प्रकृति ने सैकड़ों वर्षों में तैयार किया है।

    बुंदेलखंड जल संकट से प्रभावित क्षेत्र है जो प्रति वर्ष सूखे से जूझता है। यहां प्रति वर्ष किसानों के सामने अकाल जैसी स्थिति भी पैदा होती है। ऐसे में यहां वृक्षों का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। यह तो स्वाभाविक है कि बड़ी तादाद में वृक्षों के कटने से तापमान और जलवायु बुरी तरह प्रभावित होंगे। इस क्षेत्र का जलस्तर गिरेगा जिससे इस क्षेत्र में पेयजल का संकट भी बढ़ेगा और यहां की जमीन भी बंजर होगी ।

    इस जंगल को काटे जाने की खबर उस समय आई है जब ऑक्सीजन संकट से जूझ रही दुनिया को ऑक्सीजन के प्राकृतिक स्रोतों को बचाने और बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए।

    इस पक्ष को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि कोरोना के रूप में मानव जीवन के सामने जो आपदा आई है वह प्रकृति के दोहन का नतीजा भी हो सकती है। पेड़ों, जंगलों और नदियों को हानि पहुंचाकर पृथ्वी और पर्यावरण को असंतुलित करने का नतीजा कभी सुखकर नहीं हो सकता है। अब तक जो तबाहियां दुनिया ने देखी है और जिस तबाही से दुनिया अभी गुजर रही है उससे बचने के लिए पूरी दुनिया को प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण करना ही होगा। आने वाली पीढ़ियों के लिए हम कैसी पृथ्वी और कैसा पर्यावरण देकर जाएंगे... इस सवाल का जवाब हर व्यक्ति, हर समाज और हर राष्ट्र को देना होगा। 

    डॉ. शलभ ने आगे कहा है कि भारत ने हमेशा ही प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण की मुहिम में अग्रणी भूमिका निभायी है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने वैश्विक पर्यावरण संरक्षण को लेकर संपूर्ण विश्व पटल पर भारत को एक नजीर के रूप में प्रस्तुत किया है। भारत के नेतृत्व का ही नतीजा है कि पेरिस जलवायु समझौता पूरे विश्व में सर्वमान्य रूप से लागू हुआ। भारत के प्रयासों की वजह से ही संयुक्त राष्ट्र ने 2021-30 के दशक को 'पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्बहाली दशक' (UN Decade on Ecosystem Restoration (2021 - 30) घोषित किया है।

    पर्यावरण एवं मानव जीवन की रक्षा के व्यापक उद्देश्य को ध्यान में रखकर इस जंगल को कटने से कैसे बचाया जा सकता है डॉ शलभ ने सरकार से इस योजना पर विचार किये जाने का अपील की है।

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