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    हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से सुरक्षित रहने को समय पर प्रसवपूर्व जाँच जरूरी-सीएस

    - पोषण में कमी व एनीमिया हो सकती है हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की वजह 

    - पौष्टिक और आयरनयुक्त खान-पान जच्चा- बच्चा के स्वास्थ्य के लिए जरूरी  

    बेतिया। गर्भावस्था के दौरान थोड़ी सी लापरवाही बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहना चाहिए। ये बातें जिले के सिविल सर्जन डॉ श्रीकांत दुबे ने कही है। उन्होंने बताया कि गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं में कई हार्मोनल परिवर्तन होते हैं। ऐसे में

    जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य के लिए संतुलित प्रोटीन, आयरनयुक्त आहार लेना आवश्यक होता है। उन्होंने बताया कि इस समय लापरवाही करने पर कई तरह की शारीरिक परेशानियों से गुजरना पड़ता है। वहीं हाई रिस्क प्रेग्नेंसी (उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था) भी हो सकती है। इससे बचाव के लिए गर्भवती महिलाओं को समय पर स्वास्थ्य केंद्रों में प्रसवपूर्व जांच, एनीमिया, थायरायड, शुगर, बीपी की जाँच करानी चाहिए। प्रसवपूर्व जांच हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की पहचान में काफी सहायक होती और शुरुआती दौर में ही परेशानी का पता चल जाता है। समय पर पता चलने से इस परेशानी से आवश्यक उपचार की बदौलत बचाव किया जा सकता है।  

    हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से बचाव के लिए प्रसवपूर्व जांच जरूरी-   

    मझौलिया के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ ओमप्रकाश ने बताया कि हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से बचाव के लिए  महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान प्रसवपूर्व जांच और सतर्क रहना जरूरी है। इसलिए हर गर्भवती महिला  को गर्भावस्था के दौरान कम से कम चार बार प्रसव पूर्व जांच व सभी आवश्यक टीकाकरण जरूर करानी चाहिए। बीपी, शुगर, थायरॉयड, वजन, हीमोग्लोबिन स्तर के साथ ही अल्ट्रासाउंड द्वारा गर्भस्थ बच्चे की जांच आवश्यक है। उन्होंने बताया कि किसी प्रकार की कोई शारीरिक परेशानी होने पर भी तुरंत योग्य चिकित्सकों से जांच करानी  चाहिए। 

    कम या ज्यादा उम्र में गर्भधारण से होती है समस्या-   

    19 वर्ष से कम और 35 वर्ष से अधिक आयु वर्ग की गर्भवती महिलाओं में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की समस्या होने की प्रबल संभावना रहती है। इसलिए, ऐसी  महिलाओं को निश्चित रूप से गर्भधारण के पूर्व और गर्भावस्था के दौरान लगातार नियमित तौर पर स्वास्थ्य जांच  कराते रहना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान बरती जाने वाली सतर्कता समेत अन्य बातों का ध्यान रखना चाहिए। लगातार बुखार रहना, सिर दर्द होना, आराम करते समय भी सांस फूलना, पेट में दर्द होना, त्वचा पर लाल चकते होना, वजन बढ़ना, सूजन आदि हाई रिस्क प्रेगनेंसी के मुख्य लक्षण हैं।  

    पौष्टिक भोजन करें, मानसिक तनाव से बचें - 

    हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से बचाव के लिए गर्भवती महिलाओं को साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए। पौष्टिक और आयरनयुक्त भोजन, दूध, हरी सब्जी, फल, अंडे, मांस, मछली का सेवन हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से बचाव के लिए काफी कारगर है। इसलिए, खासकर गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक और आयरनयुक्त आहार का सेवन करना चाहिए। मानसिक तनाव से बचना चाहिए।

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